Friday 19 October, 2012

सपनों की रेलगाड़ी









नींद के स्टेशन से,
पलकों के प्लेटफार्म से,
रोज रात को छूटती है
मेरे सपनों की रेलगाड़ी,,,
 
एक नितांत गोपनीय यात्रा के लिए,
जिसमें होता नहीं
कोई मेरा सहयात्री,,
 
जो ले जाती है मुझे
और
उतारती है कभी किसी जगह अनजानी,,
घुमाती है अजीब से,अनदेखे से,
गलियाँ और कूचे,,,,,
 
तो
कभी उतार देती है मुझे
मेरी ख्वाहिशों के शहर,
जो
दिन में भी अक्सर देखा है मैंने
सोचती मुद्रा में,
पलकों को मीचे मीचे,,,
 
और
कभी किसी पुरानी पहचान के घर,
जो आखिरी बार कब देखा था उजाले में,?
याद नहीं पड़ता,,,
 
तो
कभी किसी गुज़रे हुए लम्हे के दरवाज़े,
जहाँ मेरे और मेरे मीत के साथ चलते चलते
वक़्त का सूरज
कभी नहीं थकता,,
कभी नहीं ढलता,,,
 
और
कभी किसी
पुराने दर्द के समंदर के किनारे,
जिसको देख के
फिर उठती है वही गहरी एक टीस,,,
 
तो
कभी उस ख़ुशी के गाँव,
मेरे घर तक पहुँचने में
दिन है जिसके बस,
उन्नीस या बीस,,,
 
और
कभी ऐसे ही लगाती है
एक चक्कर ये रेल,
उन  शहरों का,
उन चेहरों का,
जो मेरी अब तक की ज़िन्दगी ने बसाये है,,,,
 
तभी
माँ की ”उठो,सुबह हो गयी” की आवाज़ आती है,,
और मेरे सपनों की रेलगाड़ी
वापिस मेरी पलकों के स्टेशन पर
पहुंची पाती है,,,,
 
आँखे मलते हुए,
घडी को देखते, उठते हुए फिर हड़बड़ी में,
तैयार होकर झटपट,
कभी
सपने में देखी शक्लों और जगहों को साथ लेकर,
मैं काम पे निकल जाती हूँ,,,
 
और
कभी पूछो,
तो भी आँखों को याद  नहीं आता,
कि
कल रात
सफ़र पर कहाँ तक गए थे,
रेलगाड़ी छूटी भी थी या नहीं !!!!!!!!!!

Saturday 29 September, 2012

लोग और कहानियाँ

 लोग भी तो,
 जैसे
 एक कहानी ही होते हैं
 और
 कहानियाँ,
 जैसे कि  लोग,,!!
 
 अनेक प्रकार के लोग मिलते हैं संसार में,
 जैसे
 कई किस्म  की  कहानियाँ फिरती हैं बाज़ार में,
 
 कहानियाँ जैसे,
 कुछ बिलकुल उबाऊ,
 कुछ बेहद दिलचस्प,
 कुछ संवेदनशील,
 कुछ प्रेरणादायक,
 कुछ रूमानियत से भरी,
 कुछ जैसे रहस्यमयी,
 कुछ बचपना सा रखती,
 कुछ जिम्मेदारियों सी खिलती,
 कुछ नैतिक मूल्यों से भरपूर,
 और कुछ सिखाती बेईमानी के गुर,
 कुछ मासूम सी जैसे सुबह  की   हल्की धूप,
 और कुछ जो कहे बहुत कुछ,रहकर मद्धम सा चुप,
 कुछ जो दिल को छू जाये,
 कुछ जिन्हें हम कबका बिसरा आये,,
 
क्या लोग भी ऐसे ही नहीं होते हैं बिल्कुल,,??!!
 
लोग जैसे,
कुछ जो रहते हैं उम्र भर तक दिलो-दिमाग में,
कुछ जो साथ देते हैं हर धूप-छाँव में,
कुछ जो स्मृतियों में इस तरह धूमिल हो जाते हैं,
कि चेहरा देख कर भी याद ना आने पाते हैं,,
कुछ जिनको रखना चाहते हैं हम अपने साथ ताउम्र,
और कुछ जिनसे मिल के लगे mood हो गया चकनाचूर,
कुछ जिनके साथ वक़्त बिताने में मजा आये,
और कुछ जिनके होने को सिर्फ महसूस किया जाए,
कुछ जिन्हें सुन कर लगता है,हमारे मन की कह गए,
और कुछ को देखकर लगता है,काहे को इतना शोर मचाये,,
 
क्या कहानियाँ भी ऐसी ही नहीं होती हैं बिल्कुल,,??!!
 
हर इंसान की होती है,
शब्दों में घुली एक कहानी,
जो होती है सार उसके पूरे जीवन का,
और
कहानियों को पढ़ कर भी तो लगता है ना,
कि पात्र साक्षात् जीवंत हो कर चल रहे है
बिल्कुल इंसानों के भेस में,,!!
 
तो ये कहना
कि लोग होते हैं जैसे कि कहानियाँ,
और
कहानियाँ होती हैं जैसे कि लोग,
 ”गलत तो नहीं”??!!!

तो ही अच्छा है

कुछ बातों को समझने में देर ना हो तो ही अच्छा है,
 कम ही होती हैं वो बातें  जिनकी समझाइश वक़्त की मोहताज नहीं होती..!
 
 कुछ उम्मीदें किसी से इंसान को ना हो तो ही अच्छा है,
 कम ही होती हैं वो उम्मीदें जिनकी पोशाकें आखिर तक उम्रदराज नहीं होती..!
 
 कुछ पहचानें इंसान के आज में शामिल ना हो तो ही अच्छा है,
 कम ही होती हैं वो पहचानें जिनकी पेशी अँधेरे का आगाज़ नहीं होती..!
 
 कुछ मौकों की रात लापरवाह नींदों में जाया ना हो तो ही अच्छा है,
 कम ही होती हैं वो नींदें जिनके खुलने तक रात नाराज़ नहीं होती..!
 
 कुछ गुजारिशें ज़िन्दगी से ना की जाए तो ही अच्छा है,
 कम ही होती हैं वो गुजारिशें जिनके मरने  से रूह लाइलाज नहीं होती..!!

Monday 27 August, 2012

सपनों से भरपूर एक नया जहाँ होगा,

सपनों से भरपूर एक नया जहाँ होगा,
जहाँ रोशन तेरे मन का हर दीया होगा,
ना रहेगी कमी किसी भी ख़ुशी की,
नसीब कभी तो तुझ पर मेहरबां होगा…
 
हाँ,माना कि मुश्किल है अभी तेरी डगर,
पर कर मेरे दोस्त,थोडा सा सब्र,
क्या हुआ जो ढक लिया है अभी अँधेरे ने तेरा नूर,
छंटेगा एक दिन ये और मिलेगी सुबह की चाबी जरूर…
 
बस कभी खुद का खुद पर से भरोसा टूटने मत देना,
और हर हाल में तेरे साथ दोस्त, ”मैं हूँ ना”….!!!!
 

तो बता साँसों के साथ मद्धम मद्धम तू रूह में कैसे ना उतरे…!!!

तेरी खुशबू फैली हुई है कमरे के हर कदम ,हर कोने में,
तो बता साँसों के साथ मद्धम मद्धम तू रूह में कैसे ना उतरे…!!!

बिस्तर पे मौजूद है तेरी निशानियों की सिलवटें अब तक,
तो बता तेरी याद फिर जिस्म को हल्के हल्के क्यों ना कुतरे…!!!

तेरी हंसी को ही तो घूँट भर के पिया था मैंने पानी के बदले ,
तो बता मेरी हंसी से तेरा चेहरा फिर फिजाओं में कैसे ना उभरे….!!!

शीशे में दिखता है तेरा अक्स मेरी परछाई से झांकता सा हर बार ,
तो बता आइना देखने को बारम्बार मासूम दिल क्यूँ ना मचले…..!!!

मोहब्बत की हवाएं जब टकरा रही हैं मुझसे अलग ही अंदाज़ में,
तो बता दिल मोहित होकर बल्लियों क्यों और कैसे ना उछले….!!!!!!!!

Friday 17 August, 2012

अक्सर पुकारता है

अक्सर पुकारता है,
 जब वो पेड़ जिसकी छाँव ने देखा है,
 मेरी गोद में तुम्हे,
 मंद मंद मुस्कराहट आ जाती है ढेर सारे आंसूओं के साथ,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो बरामदा जिसके क़दमों ने देखा है,
 मेरी ओट में तुम्हे,
 उठा ले जाते हैं सालों पीछे मुझे तेरी यादों के हाथ,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो ख़त जिसकी बेचैनी ने देखा है,
 मेरी लिखावट में तुम्हे,
 तकिये को नमकीन करने में गुज़र जाती है मेरी पलकों की रात,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो कोना जिसके सुकून ने देखा है,
 मेरे वजूद की जन्चावट में तुम्हे,
 नाचने से लगते है मेरे दिल के अनकहे गर्व भरे जज़्बात,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो चौराहा जिसके नुक्कड़ ने देखा है,
 मेरे इंतज़ार में तुम्हे,
 जीवित हो उठती है अधूरी रह गयी अपनी हर मुलाकात,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो समय जिसकी सुईयों ने देखा है,
 मेरे आत्मीय प्यार में तुम्हे,
 सिसकियाँ चुनने लगते है दिल के टुकड़े जिस्म से बाहर आने के बाद,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो चाँद जिसकी सफेदी ने देखा है,
 मेरे करवा चौथ में तुम्हे,
 अंगड़ाई लेने लगते है चाशनी में लिपटे फ़िक्र के संवाद,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 जब वो फैसला जिसकी रंगत ने देखा है,
 मेरे भरोसे की ओस में तुम्हे,
 सुगन्धित कर देता है सारे घर को मेरे इश्क की मटकी में अमृत सा भरा नाज,,
 
 अक्सर पुकारता है,
 मुझे हर वो बेजान साया,
 जिसने मेरे और तुम्हारे रिश्ते को सांस लेते देखा है,,
 
 ”क्या तुम्हे भी अक्सर ऐसी पुकारें सुनाई देती हैं”!!!

आइना(couplet)

हँसी यूँ  दिल में और ख़ुशी यूँ  चेहरे पे कभी न थी ,,,,
आइना  भी पूछ रहा है ये कौन सी तमन्नाओं  का आसमान है....!!!!!